पथ में शूल बिछाने वालो, पग-पग प्रश्न उठाने वालो
मेरे ख़्वाब जलाने वालो, आख़िर अब तक चुप कैसे हो ?
मेरे ख़्वाब जलाने वालो, आख़िर अब तक चुप कैसे हो ?
बोलो, मैं फिर से निकला हूँ, झूठों को दर्पण दिखलाने
बोलो, मैं फिर से निकला हूँ, बेबस की पीड़ा को गाने
बोलो, कितनी सज़ा मिलेगी, मैंने यह अपराध किया है
बोलो, मैं फिर से निकला हूँ, अपने हक़ की दुनिया पाने
उल्टी रीत चलाने वालो, दिन को रात बताने वालो
सच को झूठ बनाने वालो, आख़िर अब तक चुप कैसे हो ?
सच को झूठ बनाने वालो, आख़िर अब तक चुप कैसे हो ?
आओ फिर मेरे चरित्र पर अपमानों के प्रश्न उछालो
आओ अभिमानों के रथ से फिर से मुझपर धूल उड़ालो
आओ फिर मेरी ख़ातिर तुम षड्यंत्रों में समय गलाओ
आओ मेरे संघर्षों पर कुंठा का दरबार सजा लो
आओ अभिमानों के रथ से फिर से मुझपर धूल उड़ालो
आओ फिर मेरी ख़ातिर तुम षड्यंत्रों में समय गलाओ
आओ मेरे संघर्षों पर कुंठा का दरबार सजा लो
तम से लाड़ लड़ाने वालो, दिनकर को धमकाने वालो
पीड़ा पर मुस्काने वालो, आख़िर अब तक चुप कैसे हो ?
अहसानों की चाहत लेकर नहीं खड़ा रहता मैं द्वारे
मेरा कौशल ले जाएगा बीच भँवर से मुझे किनारे
पीड़ा पर मुस्काने वालो, आख़िर अब तक चुप कैसे हो ?
अहसानों की चाहत लेकर नहीं खड़ा रहता मैं द्वारे
मेरा कौशल ले जाएगा बीच भँवर से मुझे किनारे
मेरा भुजबल तय कर देगा, डूबूँँगा या पार लगूँगा
रक्खो अपनी पतवारों को, रक्खो अपने पास सहारे
झूठा प्यार जताने वालो, बातों में उलझाने वालो
छुप कर तीर चलाने वालो, आख़िर अब तक चुप कैसे हो ?
रक्खो अपनी पतवारों को, रक्खो अपने पास सहारे
झूठा प्यार जताने वालो, बातों में उलझाने वालो
छुप कर तीर चलाने वालो, आख़िर अब तक चुप कैसे हो ?
© ✍🏻 निकुंज शर्मा
No comments:
Post a Comment