कहो मंथरा !
रानी के कानों को भरकर,
अवधपुरी को यूँ सुलगाकर क्या पाया है ?
राम तपे वन में जा तो,
शीतलता पाई ?
या दशरथ ने प्राण तजे तो,
उम्र बढ़ी है ?
ममता के वरदानों को अभिशाप बनाकर
इतिहासों में कोई अनुपम रीत गढ़ी है ?
लालच की चौसर पर छल की चालें चल कर
रघुकुल पर लांछन लगवाकर क्या पाया है ?
जनकसुता की निंदा करके
वैभव पाया ?
छोटी माँ की मति छोटी कर
सुख पाए हैं ?
तुम बतलाओ इस करतब की यश गाथा के
कितने वेद पुराणों ने मंगल गाये हैं ?
वैदेही का घर छुड़वाकर, बोलो धोबी
पावनता पर प्रश्न उठाकर क्या पाया है ?
इतिहासों ने केवल दुत्कारा है उनको
आग लगाने वाले कब पूजित होते हैं
निंदक को सम्मान नहीं मिलता है जग में
व्यर्थ मनुज का जन्म लिए जीवन खोते हैं
दुनिया भर में आग लगाने वालो सोचो
तुमने इस दुनिया में आकर क्या पाया है ?
© ✍🏻 निकुंज शर्मा
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