कब भला होगा उपेक्षित याचना पर ध्यान बोलो
कब तलक अनुरोध की अवमानना होती रहेगी ?
आप बाहर आ कभी क्या साथ भी दोगे मनुज का
या कि बस मंदिर बनेंगे, प्रार्थना होती रहेगी ?
कब तलक अनुरोध की अवमानना होती रहेगी ?
आप बाहर आ कभी क्या साथ भी दोगे मनुज का
या कि बस मंदिर बनेंगे, प्रार्थना होती रहेगी ?
घाव रिसते पाँव पथ पर चल रहे हैं देखते हो ?
शठ स्वजन को साधु बनकर छल रहे हैं देखते हो ?
चीख पर तो मौन थे; क्या बेबसी सुन पा रहे हो ?
स्वप्न दृग तट पर चिता से जल रहे हैं …देखते हो
देह यह निष्प्राण होकर के रहे पाषाण कब तक
कब तलक निर्मम समय की यातना होती रहेगी
जी रहा हूँ कब भला संसार में, बस रह रहा हूँ
मौन हूँ कबसे नियति के घात हँस कर सह रहा हूँ
ख़ूब पूजे जा रहे बनकर बड़े “सागर दया के”
पीर का सागर समाये इन दृगों में, कह रहा हूँ
गर समर में सारथी बनकर न आए साथ देने
सोचना भी मत सतत आराधना होती रहेगी
मैं युगों से हूँ प्रतीक्षा में, व्यथा को जानते हो
संकटों की हर कहानी, हर कथा को जानते हो
जानते हो मातृ भू के छूटने का त्रास कैसा
प्रेम में निर्मम विरह की वेदना को जानते हो
जानकर भी बन रहे अनजान पर इतना समझ लो
जब तलक ना साध लोगे साधना होती रहेगी
© ✍🏻 निकुंज शर्मा
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