जा रहे हो दूर जाओ, सारे बंधन तोड़ जाओ
पर मुझे इतना बता दो कि मेरा अपराध क्या है
पर मुझे इतना बता दो कि मेरा अपराध क्या है
मैं अपरिचित प्रेम वन में प्यास लेकर घूमता था
तुमने अपने इंगितों से चाह का दरिया दिखाया
मैं भला कब जानता था ये नयन की वर्णमाला
तुमने मन के श्यामपट पे 'प्यार' लिखना था सिखाया
भूलते हो भूल जाओ, पर मुझे इतना बताओ
'दर्द की दुनिया' नहीं तो प्रेम का अनुवाद क्या है
प्रश्न चिह्नों ने समय के जब मुझे घेरा हुआ था
तुमने ही आकर समर में उत्तरों के बाण साधे
जब ह्र्दय के गांव में डर की नदी उफनी हुई थी
तुमने ही आकर भँवर में हिम्मतों के बाँध बाँधे
छोड़ते हो छोड़ जाओ, पर मुझे इतना बताओ
प्रेम का अभिप्राय जग में, अब तुम्हारे बाद क्या है
मैं अभी उस गीत के पहले चरण पर ही रुका हूँ
गुनगुना कर छोड़ आये तुम जिसे आधा अधूरा
पूर्णता की याचनाएँ मौन रस्ता देखती हैं
तुम मिलोगे तो मिलेगा गीत को अस्तित्व पूरा
रूठते हो रुठ जाओ, पर मुझे इतना बताओ
जो अकथ है बात, उस पर बेवजह प्रतिवाद क्या है
© ✍🏻 निकुंज शर्मा
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