उठो ! उपासक
व्यर्थ करो मत यहाँ याचना
इस मन्दिर में देव सभी बहरे रहते हैं
तुमने सच को सच कहने का प्रण ठाना है
तुमसे झूठे गीत सुनाये जाएँ कैसे
कलम तुम्हारी लिख कब पाई चरण वंदना
तुम क्या जानों देव मनाये जाएँ कैसे
यहाँ सत्य पर कृपा बरसती ऊपर मन से
और झूठ पर कृपा भाव गहरे रहते हैं
यहाँ प्रार्थना बन अनाथ घूमेगी दर-दर
और चीख बन मर जाये - इनकार नहीं है
पँखों पर उम्मीदों का बोझा है भारी
मगर उड़ानों का कोई विस्तार नहीं है
यहाँ गिद्ध को अम्बर की मिलती सौगातें
पर तितली के पँखों पर पहरे रहते हैं
अपने अधिकारों की ख़ातिर लड़ना होगा
तुमको अपनी पीर स्वयं ही कहनी होगी
तुमने हरदम न्याय प्रथा पर प्रश्न किये हैं
तय है तुमको यहाँ उपेक्षा सहनी होगी
यहाँ कामना होती है बस पूरी उनकी
जिनके इक चेहरे पे दस चेहरे रहते हैं
© ✍🏻 निकुंज शर्मा
No comments:
Post a Comment