Thursday, January 23, 2025

साथी, जन की पीड़ा गाओ !

साजन संग मधुमास सुनाया
निज-मन का संत्रास सुनाया
बिछुड़न के पल भी गाये हैं
नव-कल का उल्लास सुनाया
शब्दों में युगबोध जगा अब
बेबस मन की पीड़ा गाओ ! साथी, जन की पीड़ा गाओ !!

पीड़ा के रसिकों के दल भी गागर लेकर आते होंगे
तन्हाई में, चौराहों पर गीत-सुधा छलकाते होंगे
उनके आशंकित भावों के शब्द तुम्हीं आवाज़ तुम्हीं हो
जो इस जग के अन्यायों को चुप रहकर सह जाते होंगे
सर्पों के विषदंश सह रहे
चन्दनवन की पीड़ा गाओ ! साथी, जन की पीड़ा गाओ !!

उन आँखों का क्रंदन गाओ, जिनके सपने रण में हारे
झंझावत में दूर हुए हों, जिस कश्ती से दूर किनारे
गीत रचो उस व्याकुलता पर,उस ड्योढ़ी का मर्म सुनाओ
बांसों की शैय्या पर सोये, जिसके अपनों के शव द्वारे
अब उस चौखट का सूनापन
उस आँगन की पीड़ा गाओ ! साथी, जन की पीड़ा गाओ !!

शीश चढ़ा है अगर अहम तो दर्पण भी दिखलाना होगा
गर कविधर्म निभाना है तो फ़िर युगधर्म निभाना होगा
दुनिया के सारे भावों को शब्द तुम्हें ही देने होंगे
मंगल गीत तुम्हीं ने गाये, तो क्रंदन भी गाना होगा
सीता की सुध में बेसुध इक
रघुनन्दन की पीड़ा गाओ ! साथी, जन की पीड़ा गाओ !!

© ✍🏻 निकुंज शर्मा

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