स्वप्न इस जग में सहेंगे और अब उपहास कितना ?
भोगना मन को पड़ेगा और अब सन्त्रास कितना ?
ओ ! समय के देवता बस बात इतनी सी बता दे
और लिक्खा है हमारे भाग्य में वनवास कितना ?
भोगना मन को पड़ेगा और अब सन्त्रास कितना ?
ओ ! समय के देवता बस बात इतनी सी बता दे
और लिक्खा है हमारे भाग्य में वनवास कितना ?
© ✍🏻 निकुंज शर्मा
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