जिस समय जग झूमता हो दादुरों का शोर सुनकर
उस समय में कोयलों का मौन रहना ही उचित है
उस समय में कोयलों का मौन रहना ही उचित है
कंटकों को फूल कहकर जब उगाया जा रहा हो
हर शिला को देव कह कर जल चढ़ाया जा रहा हो
झूठ के कपड़े बदल कर सच बनाने का चलन हो
जुगनुओं को जब नया दिनकर बताया जा रहा हो
देवताओं के अगर मन भा रहे हों बस धतूरे
तो वहाँ तुलसीदलों का मौन रहना ही उचित है
तो वहाँ तुलसीदलों का मौन रहना ही उचित है
नफ़रतों के बीच जाकर प्रेम गाना व्यर्थ ही है
दंभ में डूबे मनुज को सच सुनाना व्यर्थ ही है
जब कि जग को रास आये बस अँधेरों की गुलामी
उस घड़ी उजियार का परचम उठाना व्यर्थ ही है
दंभ में डूबे मनुज को सच सुनाना व्यर्थ ही है
जब कि जग को रास आये बस अँधेरों की गुलामी
उस घड़ी उजियार का परचम उठाना व्यर्थ ही है
जिस समय कर्कश नगाड़ों के सभी को साज भाए
उस समय में पायलों का मौन रहना ही उचित है
उस समय में पायलों का मौन रहना ही उचित है
जब सितारों की सभा में चांद की अवहेलना हो
पुण्य जब वनवास पाएं पाप की आराधना हो
दंडधर जब सो रहा हो, न्याय भी बहरा हुआ हो
नीतियों में दोष पाकर प्रश्न करना भी मना हो
दंडधर जब सो रहा हो, न्याय भी बहरा हुआ हो
नीतियों में दोष पाकर प्रश्न करना भी मना हो
जिस समय हर ओर केवल धूप के ही हों समर्थक
उस समय में बादलों का मौन रहना ही उचित है
उस समय में बादलों का मौन रहना ही उचित है
© ✍🏻 निकुंज शर्मा
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