Friday, January 24, 2025

मौन रहना ही उचित है

जिस समय जग झूमता हो दादुरों का शोर सुनकर 
उस समय में कोयलों का मौन रहना ही उचित है

कंटकों को फूल कहकर जब उगाया जा रहा हो
हर शिला को देव कह कर जल चढ़ाया जा रहा हो
झूठ के कपड़े बदल कर सच बनाने का चलन हो 
जुगनुओं को जब नया दिनकर बताया जा रहा हो

देवताओं के अगर मन भा रहे हों बस धतूरे
तो वहाँ तुलसीदलों का मौन रहना ही उचित है

नफ़रतों के बीच जाकर प्रेम गाना व्यर्थ ही है
दंभ में डूबे मनुज को सच सुनाना व्यर्थ ही है
जब कि जग को रास आये बस अँधेरों की गुलामी
उस घड़ी उजियार का परचम उठाना व्यर्थ ही है

जिस समय कर्कश नगाड़ों के सभी को साज भाए
उस समय में पायलों का मौन रहना ही उचित है

जब सितारों की सभा में चांद की अवहेलना हो
पुण्य जब वनवास पाएं पाप की आराधना हो
दंडधर जब सो रहा हो, न्याय भी बहरा हुआ हो
नीतियों में दोष पाकर प्रश्न करना भी मना हो

जिस समय हर ओर केवल धूप के ही हों समर्थक 
उस समय में बादलों का मौन रहना ही उचित है  

© ✍🏻 निकुंज शर्मा

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