शव शय्या पर पड़े हुए हैं, दो हारी आँखों के सपने
पीड़ा के पर्वत टूटे हैं, इक जीवन का अंत हुआ है
पीड़ा के पर्वत टूटे हैं, इक जीवन का अंत हुआ है
वाणी ने अलविदा कह दिया, टूट गई साँसों की माला
अनल वेग से धधक रही है, चिता सेज पर जलती ज्वाला
टूटी चूड़ी, आँसू, सिसकी कोई उसको रोक ना पाया
अंत समय में कितना निष्ठुर हो जाता है जाने वाला
कितनी पीड़ा सौंप गये हो जाने वाले तुम क्या जानों
यादों के बंधन देकर के इक बंधन का अंत हुआ है।
यादों के बंधन देकर के इक बंधन का अंत हुआ है।
हार गयी मेहँदी की खुशबू, पायल, कंगन के स्वर हारे
शीश झुकाये मौन खड़ी हैं, ख़ुशियाँ आयी थी जो द्वारे
रोली, कुमकुम, बिंदिया, गेसू सब बेसुध हो मौन खड़े हैं
माथे का सिंदूर खड़ा है यम के आगे हाथ पसारे
शीश झुकाये मौन खड़ी हैं, ख़ुशियाँ आयी थी जो द्वारे
रोली, कुमकुम, बिंदिया, गेसू सब बेसुध हो मौन खड़े हैं
माथे का सिंदूर खड़ा है यम के आगे हाथ पसारे
जिन आँखों में ख़्वाब सजे थे, उनमें अब ख़ारा पानी है
आँसू की बरसातें देकर , इक सावन का अंत हुआ है
आँसू की बरसातें देकर , इक सावन का अंत हुआ है
हम तुम सब हैं राही जग में क्या पाना है क्या खोना है
महज़ क्षणिक आभासी पल की खातिर ये रोना धोना है
कोई कितना भी झुठलाए लेकिन अंतिम सत्य यही है
सब माया है सब मिथ्या है, मिट्टी को मिट्टी होना है
महज़ क्षणिक आभासी पल की खातिर ये रोना धोना है
कोई कितना भी झुठलाए लेकिन अंतिम सत्य यही है
सब माया है सब मिथ्या है, मिट्टी को मिट्टी होना है
पुनः मनुज की अभिलाषा के सैनिक सब हो गए पराजित
विधि की जीत हुई है फिर से फिर इक रण का अंत हुआ है
विधि की जीत हुई है फिर से फिर इक रण का अंत हुआ है
© ✍🏻 निकुंज शर्मा
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