Friday, January 24, 2025

मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ !

मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ, मेरा गुमनामी से नाता
मुझसे अक्सर रूठे रहते मेरे अपने, भाग्य-विधाता

उजियारों ने द्वार न खोले, अँधियारों ने कंठ लगाया
मैं उत्सव को रास नहीं था, मगर उदासी ने अपनाया
फेर लिया मंज़िल ने मुँह को, संघर्षों ने पाँव न छोड़े
दुःख ने मुझको अपना समझा, सुख ने समझा सिर्फ़ पराया

दुःख ने बिन माँगे ना जाने मुझको कितने गीत दिये हैं
सुख की क्या औक़ात कि मुझको गीतों का उपहार दिलाता

विपदाएँ मेरी सहचर हैं और ह्रदय का त्रास सखा है
होंठों ने मुस्कान न देखी बस आँसू का स्वाद चखा है
शायद ईश्वर भी परिचित है मेरी क्षमताओं से, तब ही
पीड़ा की सूची में उसने ऊपर मेरा नाम रखा है

दुःख ने दी सामर्थ्य सहन की तो मैं अपने पैरों दौड़ा
सुख की बैसाखी होती तो जीवन भर यूँ ही लंगड़ाता 

जब तक उर में श्वास रहेगी मेरा ख़ुद से द्वंद रहेगा
मुस्कानों से बैर रहेगी, आँसू से संबंध रहेगा
मेरा हाथ नहीं छोड़ेगा दुःख ने ये उद्घोष किया है
आँसू से,पीड़ा से मेरा जीवन भर अनुबंध रहेगा

दुःख मेरे हमसाये जैसा पल पल मेरे साथ जिया है
सुख होता तो चार कदम की दूरी चलने से कतराता
मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ, मेरा गुमनामी से नाता 

© ✍🏻 निकुंज शर्मा

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