आज अमन के प्रस्तावों का तुम अपमान भले ही कर लो
कल रण में संत्रास मिला तो सारा दोष तुम्हारा होगा
कल रण में संत्रास मिला तो सारा दोष तुम्हारा होगा
जीवन के इस अंकगणित में सुख दुख का अनुपात बिठाते
थककर चूर हुए हैं अनगढ़ पत्थर में देवत्व जगाते
प्रेम बसे तो पंचवटी की पर्णकुटी भी राजमहल है
सोने का मृग कोरा छल है हार गए तुमको समझाते
तुम इस छल में अपने सुख का कुछ अनुमान भले ही कर लो
कल लंका में त्रास मिला तो सारा दोष तुम्हारा होगा
कीकर को तुलसी कहने से, क्या कीकर पावन होता है
बेमौसम की बरसातों से कब पतझर सावन होता है
चाहे जिसको साथ रखो पर भूल न जाना ये सच्चाई
कैसा भी पाखण्ड पहन ले, रावण बस रावण होता है
आज भले ही आडम्बर की जगमग से आकर्षित हो लो
कल लज्जित इतिहास मिला तो सारा दोष तुम्हारा होगा
प्रतिशोधों का दौर चलेगा, अपराधी समझा जायेगा
चौपालों पर चर्चा होगी, नित आरोप गढ़ा जाएगा
लेकिन सारे कोलाहल में बस नुक़सान हमारा होगा
दुनिया को निंदा से मतलब है; दुनिया का क्या जायेगा
जाओ ! कोपभवन में बैठो आज मंथरा के कहने पर
कल सुख को संन्यास मिला तो सारा दोष तुम्हारा होगा
© ✍🏻 निकुंज शर्मा
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