आप पागल तो नहीं हैं ,क्या जताए जा रहे हैं
मूक-बधिरों की सभा में, गीत गाए जा रहे हैं ?
आप पागल तो नहीं हैं !
मूक-बधिरों की सभा में, गीत गाए जा रहे हैं ?
आप पागल तो नहीं हैं !
कर रहे सब जिस तरह से तौर वह स्वीकार करिए
काम सारे बस स्वयं के लाभ के अनुसार करिए
क्या मिलेगा रात दिन यूँ बाग़ की रखवालियों से
आप भी बस हक़ जताकर, गंध का व्यापार करिए
कंटकों के बीच जाकर
निज करों पर चोट खाकर
बीज बोकर के सृजन के
और अपना हित भुलाकर
आप उपवन में नए बिरवे उगाये जा रहे हैं
आप पागल तो नहीं हैं !
डूबते को देख उसकी ओर निज पतवार करना
है बहुत दुर्लभ किसी का इस तरह व्यवहार करना
आज के इस दौर में भी कौन परहित सोचता है
चाहते सब बस किसी छल से स्वयं को पार करना
पाँव अंगद से जमाकर
हड्डियाँ अपनी गलाकर
थाह कोई ढूंढते हो
क्यूँ भँवर के बीच जाकर
आप औरों के लिए भी पुल बनाये जा रहे हैं
आप पागल तो नहीं हैं !
बोलिए सबके हितों की कामना से लाभ क्या है
मोह तजकर यूँ निरंतर साधना से लाभ क्या है
आप दुनिया के विचारों या चलन से सीखिए कुछ
आज जग में कर्म की आराधना से लाभ क्या है
सब धरोहर की धरा पर
सिर्फ़ अपना हक जताकर
चाहते निज घर बनाना
नींव के पत्थर चुराकर
आप खंडहर को पुनः मन्दिर बनाये जा रहे हैं
आप पागल तो नहीं हैं !
© ✍🏻 निकुंज शर्मा
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