Friday, January 17, 2025

तरक़्क़ी का हाई-वे

तरक़्क़ी के हाई-वे से थोड़ा नीचे उतरते ही पड़ता था एक गाँव, गाँव का नाम था विकसितपुर। चूँकि गांववालों का विश्वास था कि प्रयागराज में गंगा-जमुना के साथ सरस्वती की धारा भी मिलती तो है, पर दिखती नहीं है; इसलिए गाँव की मुख्य सड़क का नाम सरस्वती मार्ग रख दिया गया था।

दरअस्ल गांव की सड़क ने एक दिन गड्ढे को दिल में बसा लिया था इसलिए गड्ढे ने धीरे-धीरे अपने प्यार और आकार से सड़क को भर दिया था। पुरुष अपना पूरा अस्तित्व लेकर स्त्री को ढाँप लेता है और स्त्री समर्पित होते-होते एक दिन लुप्त हो जाती है। 


सड़क का समर्पण गांववालों की यात्रा के सुख का तर्पण बन गया। गाँव के लोग घर से ‘मैं निकला गड्डी लेके’ गाते हुए निकलते और कुछ दूर चलते ही ‘क्यूँ निकला गड्डी लेके' गाते हुए वापस लौट आते। सड़क और गड्ढे की प्रेम कहानी की सारी पीड़ा गांववाले अपनी देह की पोर-पोर में महसूस करते थे। नगर निगम भी प्रेमपंथी था इसलिए उसने कभी भी सड़क को इतना मज़बूत नहीं होने दिया कि गड्ढा प्रसाद उसके पास आने की हिम्मत न कर सके। 

सड़क देवी और गड्ढाप्रसाद के बीच दो जिस्म एक जान जैसा संबंध था और इस संबंध के कारण उधर से निकलने वालों के एक ही जिस्म से दो बार जान निकलने का ख़तरा रहता था! 


गड्ढाप्रसाद स्वभाव से बड़े ही खुले विचारों वाले थे और सड़कदेवी अपने आकार की तरह संकीर्ण। अक्सर प्रेम के गहन क्षणों में सड़क को आलिंगनबद्ध करते हुए गड्ढाप्रसाद कहते कि "प्रिये सड़क, तुम तो क्षणभंगुर हो और मैं शाश्वत! जब तुम नहीं रहोगी तो मैं आने वाली पीढ़ियों को तुम्हारी कहानी सुनाया करूंगा।" प्रेम में इस अहंकार की ध्वनि को सुनकर सड़क, भीतर से कई बार टूट चुकी थी। जब जब सड़क टूटती थी, तब तब गड्ढा अपना आकार बढ़ा लेता था। 

गड्ढाप्रसाद का बढ़ता वर्चस्व और अपना अस्तित्व विलुत्प होता देखकर बरसात आते ही सड़क देवी अज्ञातवास में चली जाती थी और गड्ढा प्रसाद मेघदूत के यक्ष की तरह पानी-पानी हो जाते थे। 


गड्ढाप्रसाद का ख़ालीपन दूर करने के लिए रोज सुबह, नगर निगम मिट्टी डालने का विचार करता और शाम तक उस विचार पर मिट्टी डाल के सो जाता। सड़कदेवी को कोई गड्ढाप्रसाद से अलग न कर दे इसलिए नगर निगम वाले किसी विकास को आसपास भी नहीं फटकने देते थे। क्योंकि विकास तो सबका था लेकिन सड़कदेवी के तो एक मात्र गड्ढाप्रसाद थे। गांव वाले समझ चुके थे कि गड्ढाप्रसाद का ख़ालीपन उस दिन दूर होगा जिस दिन भ्रष्टाचार की नीयत भर जाएगी।


© ✍🏻 निकुंज शर्मा 

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