Friday, January 17, 2025

लंका दहन

पौरुष, वैभव, साहस, यश, बल
सब साथ नगर के जलता था
लंका का शीश झुका जग में

गौरव का भाल पिघलता था

हनुमत का क्रोध बना पावक, हिमकण की तरह गली लंका

रावण का अहम् जला पहले फिर उसके बाद जली लंका


इक वानर से कैसा डरना; भ्रम की दीवार चटकती थी

ज्यों-ज्यों लपटों का ताप बढ़ा, नगरी की शोभा घटती थी

गूंजा बजरंगी का गर्जन, वसुधा काँपी, नभ डोला था

लगता था क्रुद्ध हुए शिव ने फिर नयन तीसरा खोला था


इक हठ ने राख किया कंचन, रानी को बहुत खली लंका

रावण का अहम् जला पहले फिर उसके बाद जली लंका


हनुमत से प्राण बचे जिनके, अपना सौभाग्य मनाते थे

यह दूत नहीं दावानल है; आपस में भट बतियाते थे

अमृत का कोश हुआ पानी, तन का कण-कण क्रंदन में था

धरती का सर्वाधिक संशय उस क्षण रावण के मन में था


करनी पर अपने राजा की लज्जित होकर पिघली लंका

रावण का अहम् जला पहले फिर उसके बाद जली लंका


दस शीश लिए फिरता रावण दस के दस की मति मारी थी

लंका की कीर्ति बिलखती थी इक वानर से रण हारी थी

आँखों की कोर बची लेकिन नयनों के सपने जलते थे

अपने पापों की लपटों में रावण के अपने जलते थे


अपना सब सोना ले सागर में धोने पाप चली लंका

रावण का अहम् जला पहले फिर उसके बाद जली लंका


© ✍🏻निकुंज शर्मा

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