नदी तुमसे ना कोई आस
खोदूँगा निज कूप उसी से
तृप्त करूँगा प्यास !
नदी तुमसे ना कोई आस
तुमको है अभिमान तुम्हारे
मीठे मीठे जल पर
और मुझे विश्वास है मेरे
श्रम पर बाजूबल पर
चाहें राजभवन मैं पाऊँ
या भोगूँ वनवास
नदी तुमसे ना कोई आस
आशाओं के घट लेकर
क्यूँ भटकूँ द्वारे द्वारे
अहसानों से पाए शरबत
भी लगते हैं खारे
शीश उठा कर के जीना ही
जीने का अहसास
नदी तुमसे ना कोई आस
कोशिश के वाणों से तय है
पर्वत भी टूटेंगे
और धरा के सीने से
जल के झरने फूटेंगे
स्वप्न सफलता का रस चखकर
तोड़ेंगे उपवास
नदी तुमसे ना कोई आस
© ✍🏻 निकुंज शर्मा
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