अनचाहे सपनों की ख़ातिर
जो राहों में छूट गए थे,
उन सपनों के विजय पर्व पर
गीत सुनाने आऊँगा मैं
जो राहों में छूट गए थे,
उन सपनों के विजय पर्व पर
गीत सुनाने आऊँगा मैं
अभी ख़्वाहिशों के पैरों में बंधन हैं, ज़ंजीर पड़ी हैं
जिम्मेदारी और मुश्किलें मेरी राहें रोक खड़ी हैं
जिस पल इन्हें पराजित करके
मैं दुनिया का भ्रम तोड़ूंगा
तब उस पल तेरी चौखट पर
दीप जलाने आऊँगा मैं
मैं मानुस तुम देव मुझे तुम जो दोगे स्वीकार रहेगा
पर अपनी किस्मत से मुझको लड़ने का अधिकार रहेगा
माना चोटों की बारिश है
सपनों के पत्थर पे लेकिन
जब इनको देवत्व मिलेगा
पुष्प चढ़ाने आऊँगा मैं
ख़ार मिलेंगे या चन्दनवन , यह मुझको परवाह नहीं है
प्रेम भरी कुटिया स्वीकृत है, राजमहल की चाह नहीं है
जिसकी किरणों की आभा से
अँधियारे सब हट जाते हैं
उम्मीदों के उस दिनकर को
अर्घ चढ़ाने आऊँगा मैं
© ✍🏻 निकुंज शर्मा
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