Friday, January 24, 2025

एकाकी मन की चौखट

गहन अँधेरों का डेरा है, एकाकी मन की चौखट पर
उम्मीदों के दीप जलाकर, अँधियारों से दूरी कर दो

चतुराई के हाथ लुटे हो
जैसे राही भोले भाले
मेरे निश्छल गीतों के यूँ
सब ने क्या क्या अर्थ निकाले
जग को दे दो काशी क़ाबा, मेरी क़िस्मत में मगहर दो
उम्मीदों के दीप जलाकर, अँधियारों से दूरी कर दो

मुक्त उड़ानों का इक पंछी
कैसे पिंजरा उसको भाये 
गगन पराया, धरती गिरवी
इससे अच्छा है मर जाये
या तो उसके पर ले लो तुम, या फ़िर उड़ने को अम्बर दो
उम्मीदों के दीप जलाकर, अँधियारों से दूरी कर दो

अभिमानी पनघट पर कब तक
प्यास मिटे अपमानित होकर
जाने कितनी बार मरेगा
जीवन यह अभिशापित होकर
भटकन को रस्ता कर दो या, पैरों को मंज़िल के घर दो
उम्मीदों के दीप जलाकर, अँधियारों से दूरी कर दो

© ✍🏻 निकुंज शर्मा

तुमको अच्छे नहीं लगेंगे

तुमको बस वो ही भाते जो जूठे फूलों से दुलराएँ 
सच के तीर चलाने वाले तुमको अच्छे नहीं लगेंगे

हम ठहरे आराधक श्रम के, 
कैसे निज-आदर तज पाते
जय जयकार तुम्हारी करते, 
और तुम्हारे ध्वज लहराते
साथ तुम्हें उनका भाता जो मौन तुम्हारे पीछे आएँ
हम निज राह बनाने वाले तुमको अच्छे नहीं लगेंगे

चाल तुम्हारी ग़लत सही पर
हम कोई भी भेद न जानें
औऱ तुम्हारी वाणी को ही 
परम सत्य कहकर हम मानें
तुमको वो ही भाते हैं जो साथ तुम्हारे कोरस गायें
हम निज सुर में गाने वाले तुमको अच्छे नहीं लगेंगे

ख़ुद जूझे हम अँधियारों से 
सूरज से उजियार न माँगा
प्रतिमाओं के पाँव न पूजे, 
देवों से उपकार न माँगा
तुमको अभिलाषा उनकी है, जो द्वारे पर शीश झुकाएँ
हम दर्पण दिखलाने वाले तुमको अच्छे नहीं लगेंगे

© ✍🏻 निकुंज शर्मा

द्रोण गर स्वीकार करते

क्या कठिनतम यह घड़ी है वेदना कितनी बड़ी है
नेह का सूरज ना जागा हाय यह जीवन अभागा
बस यही सोचा किए थे श्वान मुख में वाण भरते
हम धनुर्धर कम नहीं थे द्रोण गर स्वीकार करते

अनसुनी विनती, उपेक्षा, नैन में जल और क्या है
देव निश्चल साधना का तुम कहो फल और क्या है
जब कटा मेरा अँगूठा तब बना है श्रेष्ठ अर्जुन
है नहीं ये भी अगर छल तो भला छल और क्या है

भेद पुतली मीन की हम भी नए इतिहास गढ़ते
हम धनुर्धर कम नहीं थे द्रोण गर स्वीकार करते

याचना निष्फल रही सब था यही बस मर्म अपना
साधना, अभ्यास, निष्ठा था यही बस कर्म अपना
जो किया अर्जित लगन से कर दिया तुमको समर्पित
किन्तु क्या तुमने निभाया था गुरु का धर्म अपना

यह धनुष यह शर हमारे क्यों भला जग को अखरते
हम धनुर्धर कम नहीं थे द्रोण गर स्वीकार करते

पाँव में पाहन बँधे थे यह नहीं था पर नहीं थे
प्रश्न कितने थे ह्रदय में पर कहीं उत्तर नहीं थे
हो धनुष टंकार या हों युद्ध में करतब हमारे
श्रेष्ठ हो या ना किसी से हाँ मगर कमतर नहीं थे

यह स्वयं से बोलते हैं राह में गिरते संभलते
हम धनुर्धर कम नहीं थे द्रोण गर स्वीकार करते

© ✍🏻 निकुंज शर्मा

अनसुनी याचना

उठो ! उपासक
व्यर्थ करो मत यहाँ याचना 
इस मन्दिर में देव सभी बहरे रहते हैं

तुमने सच को सच कहने का प्रण ठाना है
तुमसे झूठे गीत सुनाये जाएँ कैसे
कलम तुम्हारी लिख कब पाई चरण वंदना
तुम क्या जानों देव मनाये जाएँ कैसे

यहाँ सत्य पर कृपा बरसती ऊपर मन से
और झूठ पर कृपा भाव गहरे रहते हैं

यहाँ प्रार्थना बन अनाथ घूमेगी दर-दर
और चीख बन मर जाये - इनकार नहीं है
पँखों पर उम्मीदों का बोझा है भारी
मगर उड़ानों का कोई विस्तार नहीं है

यहाँ गिद्ध को अम्बर की मिलती सौगातें
पर तितली के पँखों पर पहरे रहते हैं

अपने अधिकारों की ख़ातिर लड़ना होगा
तुमको अपनी पीर स्वयं ही कहनी होगी
तुमने हरदम न्याय प्रथा पर प्रश्न किये हैं
तय है तुमको यहाँ उपेक्षा सहनी होगी

यहाँ कामना होती है बस पूरी उनकी 
जिनके इक चेहरे पे दस चेहरे रहते हैं

© ✍🏻 निकुंज शर्मा

प्रेम का अनुवाद क्या है

जा रहे हो दूर जाओ, सारे बंधन तोड़ जाओ
पर मुझे इतना बता दो कि मेरा अपराध क्या है 
मैं अपरिचित प्रेम वन में प्यास लेकर घूमता था
तुमने अपने इंगितों से चाह का दरिया दिखाया
मैं भला कब जानता था ये नयन की वर्णमाला
तुमने मन के श्यामपट पे 'प्यार' लिखना था सिखाया

भूलते हो भूल जाओ, पर मुझे इतना बताओ
'दर्द की दुनिया' नहीं तो प्रेम का अनुवाद क्या है 

प्रश्न चिह्नों ने समय के जब मुझे घेरा हुआ था
तुमने ही आकर समर में उत्तरों के बाण साधे
जब ह्र्दय के गांव में डर की नदी उफनी हुई थी
तुमने ही आकर भँवर में हिम्मतों के बाँध बाँधे

छोड़ते हो छोड़ जाओ, पर मुझे इतना बताओ
प्रेम का अभिप्राय जग में, अब तुम्हारे बाद क्या है 

मैं अभी उस गीत के पहले चरण पर ही रुका हूँ
गुनगुना कर छोड़ आये तुम जिसे आधा अधूरा
पूर्णता की याचनाएँ मौन रस्ता देखती हैं
तुम मिलोगे तो मिलेगा गीत को अस्तित्व पूरा

रूठते हो रुठ जाओ, पर मुझे इतना बताओ
जो अकथ है बात, उस पर बेवजह प्रतिवाद क्या है 

© ✍🏻 निकुंज शर्मा

सियासत और मुहब्बत

टूटे सपनों का हर पुरजा जोड़ दिया
हिम्मत, रिश्ते, दिल का रस्ता जोड़ दिया
एक सियासत; जिसने दुनिया तोड़ी है
एक मुहब्बत; जिसने क्या क्या जोड़ दिया

© ✍🏻 निकुंज शर्मा

मन्नतें

कभी होता नहीं है मन, तो बे-मन बाँध आता हूँ
कहीं हो जाए ना देवों से अनबन, बाँध आता हूँ
मुझे मालूम है बे-शक वो मेरा है मगर फिर भी 
शजर पर मन्नतें अपनी मैं रस्मन बाँध आता हूँ

© ✍🏻 निकुंज शर्मा

एकाकी मन की चौखट

गहन अँधेरों का डेरा है, एकाकी मन की चौखट पर उम्मीदों के दीप जलाकर, अँधियारों से दूरी कर दो चतुराई के हाथ लुटे हो जैसे राही भोले भाले मेरे नि...