गहन अँधेरों का डेरा है, एकाकी मन की चौखट पर
उम्मीदों के दीप जलाकर, अँधियारों से दूरी कर दो
उम्मीदों के दीप जलाकर, अँधियारों से दूरी कर दो
चतुराई के हाथ लुटे हो
जैसे राही भोले भाले
मेरे निश्छल गीतों के यूँ
सब ने क्या क्या अर्थ निकाले
जग को दे दो काशी क़ाबा, मेरी क़िस्मत में मगहर दो
जैसे राही भोले भाले
मेरे निश्छल गीतों के यूँ
सब ने क्या क्या अर्थ निकाले
जग को दे दो काशी क़ाबा, मेरी क़िस्मत में मगहर दो
उम्मीदों के दीप जलाकर, अँधियारों से दूरी कर दो
मुक्त उड़ानों का इक पंछी
कैसे पिंजरा उसको भाये
गगन पराया, धरती गिरवी
इससे अच्छा है मर जाये
कैसे पिंजरा उसको भाये
गगन पराया, धरती गिरवी
इससे अच्छा है मर जाये
या तो उसके पर ले लो तुम, या फ़िर उड़ने को अम्बर दो
उम्मीदों के दीप जलाकर, अँधियारों से दूरी कर दो
अभिमानी पनघट पर कब तक
प्यास मिटे अपमानित होकर
जाने कितनी बार मरेगा
जीवन यह अभिशापित होकर
प्यास मिटे अपमानित होकर
जाने कितनी बार मरेगा
जीवन यह अभिशापित होकर
भटकन को रस्ता कर दो या, पैरों को मंज़िल के घर दो
उम्मीदों के दीप जलाकर, अँधियारों से दूरी कर दो
© ✍🏻 निकुंज शर्मा